Why do Bhai Dooj celebrate? How do Bhai Dooj celebrate?

Why and how does Bhai Dooj celebrate?

दोस्तों भाई दूज हिन्दुओं का एक ऐसा त्यौहार है जिस दिन बहनें अपने भाइयो के लिए भगवान से लम्बी उम्र और उनके स्वस्थ के लिए कामना करती हैं। ठीक रक्षाबंधन के त्यौहार की तरह ही।
दीपावली धनतेरस से शुरू होती है दिवाली के दूसरे दिन रूप चौदस होती है
और तीसरा दिन दिवाली का मुख्य दिन होता है इस कार्तिक अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है
और चौथा दिन गोवर्धन पूजा और दिवाली का पांचवा
और अंतिम दिन भाई दूज का होता है भाई दूज, जिसे भाऊ बीज, भातृ द्वितीया, भाई द्वितीया और भतरु द्वितीया, भाई फोंटा के नाम से भी जाना जाता है, ये एक विशेष हिंदू त्योहार है जो भाई और बहन के बीच प्रेम का बंधन बनाता है। भाई दूज पर, बहनें अपने भाई के माथे पर “तिलक” या “टीका” लगाती हैं, और अपने अपने भाई के लंबे जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। दोनों भाई और बहन उत्सव के कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे के लिए उपहार प्राप्त करते हैं।
भैया दूज को चिह्नित करने के लिए एक उत्सव भोजन तैयार किया जाता है। इस त्योहार को गुजराती, मराठी और कोंकणी भाषी समुदायों के बीच भाई बीज, बंगालियों के बीच भाई फोंटा और नेपाल में भाई टेका कहा जाता है। और इसके साथ विभिन्न लोककथाएँ जुड़ी होती हैं।
भाई दूज के इतिहास के बारे में लोकप्रिय कहानियों में से एक का कहना है, कि भगवान कृष्ण ने जब अपनी बहन सुभद्रा के साथ राक्षस नरकासुर का वध किया था, तो उन्होंने उसका मिठाई, फूल और माथे पर तिलक लगाकर उसका स्वागत किया था। यह प्यार भरा इशारा कृष्ण को इतना भाया कि उन्होंने उन्हें कई वरदान दिए।
यह त्यौहार रक्षाबंधन के समान है । हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, मृत्यु के देवता यमराज ने इस दिन अपनी बहन यमी से मुलाकात की थी। यमी, जिन्हें यमुना के रूप में भी जाना जाता है, ने उनका स्वागत आरती के साथ किया, उनके माथे पर “तिलक” लगाया और उन्हें मिठाई खिलाई। उसके प्यार से प्रेरित होकर, यमराज ने उसे एक उपहार दिया जो उसके प्रति उसके प्यार और स्नेह का प्रतीक था। मृत्यु के देवता ने यह भी घोषित किया कि जो भी भाई इस दिन अपनी बहन से “आरती” और ‘तिलक’ प्राप्त करेगा, उसे कभी भी मृत्यु से नहीं डरना चाहिए।

भाई दूज का त्यौहार क्‍यों मनाया जाता है?

पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य भगवान की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था।  यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी।  वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। फिर कार्तिक शुक्ल का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा, ”मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।’ बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना के आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन से वर मांगने के लिए कहा।
यमुना ने कहा, ”भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो।  मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे।” यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर विदा ली। तभी से भैया दूज की परंपरा शुरू हुई। ऐसी मान्यता है कि जो भाई इस दिन आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता है।  इसी वजह से भाई दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।

भाई दूज पर क्‍या करें?

भाई  दूज के दिन नहा-धोकर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. इस दिन बहनें नए कपड़े पहनती हैं। 
इसके बाद अक्षत (ध्‍यान रहे कि चावल खंड‍ित न हों), कुमकुम और रोली से आठ दल वाला कमल का फूल बनाएं।
  • अब भाई की लंबी उम्र और कल्‍याण की कामना के साथ व्रत का संल्‍प लें। 
  • अब विधि-विधान के साथ यम की पूजा करें। 
  • यम की पूजा के बाद यमुना, चित्रगुप्‍त और यमदूतों की पूजा करें। 
  • अब भाई को तिलक लगाकर उनकी आरती उतारें। 
  • इस मौके पर भाई को यथाशक्ति अपनी बहन को उपहारा या भेंट देनी चाहिए। 
  • पूजा होने तक भाई-बहन दोनों को ही व्रत करना होता है। 
  • पूजा संपन्‍न होने के बाद भाई-बहन साथ में मिलकर भोजन करें। 
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